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हिंदी क्रियाओं की रूप रचना

बदरीनाथ कपूर

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 10174
आईएसबीएन :9789352211388

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

हिंदी के आरंभिक व्याकरण यूरोपीय विद्वानों ने लिखे थे। इन व्याकरणों को लिखने में उन्होंने वही पद्दति अपनायी, जिसमे उनके अपने व्याकरण लिखे गए थे। लौटिन पद्दति के उन व्याकरणों में पदों का वर्गीकरण अर्थमूलक आधार पर ही होता था। बाद में जब हिंदी भाषाभाषी विद्वानों ने व्याकरण लिखे तो उन्होंने भी जाने-अनजाने पूर्वलिखित व्याकरणों को आधार बनाया। भारतीय प्राचीन पद्दति पदों का विवेचन तथा वर्गीकरण उनकी रूप-रचना के आधार पर ही करती थी। विश्वविख्यात ‘अष्टा ध्यायी’ इसका ज्वलंत प्रमाण है।

प्रस्तुत पुस्तक में क्रियापदों के सभी वर्गीकरण पदों की रूप-रचना पर ही आधारित हैं। एकपदीय और द्विपदीय क्रियापद, विकारी और अविकारी क्रियापद, क्रत्रि अनुगामी और कर्मादि-अनुगामी क्रियापद, क्रित्रवाच्य और कर्मादिवाच्य क्रियापद आदि सभी वर्गीकरणों का आधार पूर्णतः उनकी रूप-रचना ही है।

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